प्लास्टिक उत्पादों से भारतीयों का परिचय बड़े पैमाने पर कब हुआ?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 17/10/2021

औद्योगिक विस्तार में सरकार की भूमिका 1914 से पहले महज निजी पूँजी और उद्यमों को प्रोत्साहन देने तक सीमित थी। वह भी ख़ास यूरोपीय कारोबारियों के लिए। सरकार ने 1905 में वाणिज्य विभाग स्थापित किया था। मग़र इसके प्रभाव बाद में नजर। इसके बाद पहला औद्योगिक आयोग 1916 में बना, जिसकी रपट सालभर बाद आई। इसमें कहा गया कि भारत “अब भी बने-बनाए उत्पादों के बजाय मुख्य रूप से कच्चे माल का उत्पादक ही है।” इस बीच, प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत को हथियार उत्पादन के अलावा अन्य क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत पर सरकार का ध्यान गया। इस बारे में 1921 के राजकोषीय आयोग ने भी अनुशंसाएँ की थीं।

हालाँकि सरकार इसके इंतज़ाम कर नहीं पाई क्योंकि 1921 के बाद से देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने लगी थी। फिर 1930 के दशक में ब्रिटिश कारोबारियों ने भारत से अपनी पूँजी भी निकालना शुरू कर दी थी। काफ़ी निकल भी चुकी थी। उधर, कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बयानों से लग रहा था कि वे समाजवाद की तरफ अधिक आकर्षित हैं। इसका भारतीय पूँजीपतियों पर भी असर पड़ा। वे अपने कारोबार का विस्तार और नए निवेश करने से हिचकिचाने लगे। फिर भी थोड़ा-बहुत काम हुआ। ख़ास तौर पर भारतीयों के मालिकाने वाले बैंकों, निवेश-न्यासों आदि में विस्तार की गतिविधियाँ देखी गईं। 

इस बीच, दूसरे विश्व युद्ध (1939-45) के हालात ने औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने में वहाँ मदद की, जहाँ पहले भारतीय कारोबारी जगत अनजान था। जैसे- प्लास्टिक, मशीनी उपकरण, कुछ मूलभूत रसायन आदि। हालाँकि आज़ादी के बाद भी विदेशी निवेश के देश से बाहर जाने की स्थिति बनी रही, पर तब भी 1949 तक भारत के कुल पूँजी निवेश में इसकी हिस्सेदारी 44.7 फ़ीसदी तक थी।

वैसे, राजनीतिक स्थितियों के बावज़ूद भारतीय नागरिकों में 1911 के बाद से औद्योगिक विकास में रुचि काफ़ी देखी गई। इससे पहले बम्बई के अलावा अन्य सभी जगहों पर अंग्रेज ही मुख्य भूमिका में थे। चाय, जूट, कोयला जैसे क्षेत्रों में ब्रिटिश कारोबारियों का एकाधिकार था। मग़र कपास के क्षेत्र में भारतीय हावी थे। आम तौर पर 1914 के पहले जिन भारतीयों ने कारखाना उद्योग में दिलचस्पी दिखाई वे या तो पूरब के बंगाली थे या पश्चिम के पारसी। लेकिन 1923 में सरकार द्वारा औद्योगिक वर्ग को सुरक्षा देने की नीति और 1930 के दशक में ब्रिटिश पूँजी के बाहर जाने की स्थिति ने बैंक कारोबार में लगे उद्योगपतियों को प्रोत्साहित किया कि वे विस्तार करें। उस समय बैंक कारोबार ख़ास तौर पर मारवाड़ियों के हाथ में था। उन्होंने धीरे-धीरे कपास और शक्कर उद्योग के क्षेत्र में विस्तार शुरू किया। इन्हीं से एक थे, जीडी बिड़ला। वे आजादी से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख वित्तीय मददगार भी थे। 

इस तरह भारतीय पूँजीपतियों का दख़ल बढ़ा था लेकिन भारतीय औद्योगिक वर्ग में अब भी भारत के लोगों के संख्या अधिक नहीं थी। बल्कि ‘एजेंसी हाउस’ व्यवस्था के ढह जाने के बाद प्रबंधन संस्थाएँ अस्तित्व में आ गईं थीं। पहले इन संस्थाओं ने सौदागरों की तरह काम किया। फिर उद्योग प्रबंधकों की तरह विभिन्न व्यवसायों का वित्तीय, प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथ में लेकर उसे संचालित करने लगीं। हर प्रबंधकीय संस्था ने अपनी पूँजी भी लगाई। नए कारोबार, प्रतिष्ठान भी शुरू किए। नतीजा ये हुआ कि औद्योगिक उपक्रमों की संख्या भले बढ़ी लेकिन निदेशकों/मालिकों की तादाद कम रही। इस तरह वास्तव में, भारतीय उद्योग कुछ चुनिंदा लोगों के हाथ में सिमटा रहा। असल में प्रबंधकीय समितियों की व्यवस्था फ़ायदेमंद भी थी। इससे खर्च बचता था। केंद्रीयकृत प्रशासन का बंदोबस्त हो रहा था। निवेश का रास्ता भी आसान बन रहा था। इस प्रणाली ने औद्योगिक विस्तार को प्रोत्साहित किया। मुंशीगिरी और पर्यवेक्षक के स्तर पर औद्योगिक रोजगार को बढ़ावा दिया। 

इस तरह उद्योग जगत के उच्च पदों पर अब भी अधिकांश यूरोपीय या आँग्ल-भारतीय समुदाय के लोग ही थे। फिर चाहे वे यूरोपीय लोगों के कारोबारी उपक्रम हों या भारतीयों के। भारतीय नागरिक अधीनस्थ पदों पर ही सीमित थे, या तो लिपिक या ऐसे ही कोई अन्य पद। तकनीक पर आधारित उद्योग में यह स्थिति स्वाभाविक थी। इसके मुख्य रूप से दो कारण थे। एक- ज़्यादातर उद्योगपति विदेशी विशेषज्ञों के पक्ष में थे क्योंकि अच्छी तरह प्रशिक्षित भारतीय संख्या में वैसे ही कम थे। ऐसे में किसी भारतीय को प्रशिक्षित कर उसे उच्च पद के लिए तैयार करने से बेहतर और सस्ता उपाय यूरोपीय विशेषज्ञों की सेवाएँ लेने का था। यह दूसरा कारण था, जिसे अधिकांश उद्योगपति आजमा रहे थे। 

इसी दौरान सन् 1919 से 1939 के बीच सरकार ने औद्योगिक प्रतिष्ठानों को कई तरह से सहायता भी दी। इसका एक आला उदाहरण है- बंबई प्रांत में जलविद्युत संयंत्र का निर्माण। यह भारत के निजी कारोबारियों के सहयोग से बना था। सरकार ने भू-अधिग्रहण कानून पारित कर इसे संभव बनाया था। इस तरह कहा जा सकता है कि अंग्रेजी शासन के आखिरी 20-25 सालों ने आधुनिक औद्योगिक राज्य का खाका तैयार कर दिया था। हालाँकि इसने अर्थव्यवस्था में गंभीर असंतुलन भी पैदा किया था। 

भारत में ब्रिटिश शासन की इसलिए आलोचना की जाती है कि उसने औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का अपने फायदे के लिए दोहन किया। इसमें संदेह भी नहीं कि आर्थिक गतिविधियों से ब्रिटिश कारोबारियों ने मोटा मुनाफ़ा कमाया। भारत से खूब पैसा ब्रिटेन भेजा। लेकिन फिर भी दोहन तुलनात्मक रूप से कम ही हुआ। कारण कि इसके लिए काफी सार्वजनिक निवेश की जरूरत थी। साथ ही नियोजन की भी। जबकि वित्तीय और राजनैतिक कारणों से यह संभव नहीं था। ख़ास तौर पर, 1858 के बाद तो भारत सरकार मूलभूत रूप से कमजोर ही हो गई थी। भारतीय शासन ब्रिटिश ताज के हाथ में आने के बाद वहाँ के शाही तख़्त के खर्च उठाने की भी तब भारत सरकार से माँग की जाने लगी थी। भारत में अंग्रेजी फौज के रखरखाव का ख़र्च भी बढ़ रहा था। भारत के बजट का बड़ा हिस्सा इन्हीं सब चीजों पर ख़र्च हो जाता था। इससे प्रशासन का असहाय होना स्वाभाविक था।
(जारी…..)
अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
57. भारत में औद्योगिक विस्तार का अगुवा किस भारतीय को माना जाता है?
56. क्या हम जानते हैं, भारत में सहकारिता का प्रयोग कब से शुरू हुआ?
55. भारत में कृषि विभाग की स्थापना कब हुई?
54. अंग्रेजों ने पहली बार लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र कितनी तय की थी?
53. ब्रिटिश भारत में कानून संहिता बनाने की प्रक्रिया पहली बार कब पूरी हुई?
52. आज़ादी के बाद पाकिस्तान की पहली राजधानी कौन सी थी?
51. आजादी के आंदोलन में 1857 की क्रांति से ज्यादा निर्णायक घटना कौन सी थी?
50. चुनाव में मुस्लिमों को अलग प्रतिनिधित्व देने के पीछे अंग्रेजों का छिपा मक़सद क्या था?
49. भारत में सांकेतिक चुनाव प्रणाली की शुरुआत कब से हुई?
48. भारत ब्रिटिश हुक़ूमत की महराब में कीमती रत्न जैसा है, ये कौन मानता था?
47. ब्रिटेन के किस प्रधानमंत्री को ‘ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने वाला’ माना गया?
46. भारत की केंद्रीय विधायी परिषद में सबसे पहले कौन से तीन भारतीय नियुक्त हुए?
45. कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

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