डॉक्टर नन्दिता पाठक, दिल्ली से, 8/3/2021
महान् गुणों से ओत-प्रोत महिलाएँ समर्थ थीं, हैं और रहेंगी भी। क्योंकि उनमें तमाम विपरीतताओं के बावज़ूद उस सामर्थ्य को हासिल कर लेने का इरादा होता है। कैसे भी। उदाहरण, अभी कुछ दिन पहले ही मेरे अनुभव से गुज़रा। मेरी सासू माँ श्रीमती शकुन्तला पाठक जी का उस दिन मेरे पास फोन आया। वे पूछ रही थीं, “बेटा गाड़ी में ऐसी कौन सी चीज लगती है, जिससे कहीं आते-जाते वक़्त बीच रास्ते में कहीं रुकना नहीं पड़ता।” उनकी बात सुनकर समझने में मुझे थोड़ा समय लगा। इस बीच उन्होंने जैसे ही बताया कि रास्ते में “सबकी गाड़ियाँ बिना रुके निकल जाती हैं, पर हमारी रुकी रहती है”, तो बात तुरन्त मेरी समझ में आ गई। वे ‘फास्ट टैग’ (Fast Tag) की बात कर रही थीं। पर चूँकि उम्र उनकी अधिक हो चुकी है, इसलिए ठीक तरह से बताने में उन्हें मुश्किल हो रही थी।
लिहाज़ा मैंने उन्हें बताया, “माता जी (हमारे यहाँ सभी लोग उन्हें ऐसे ही बुलाते हैं), वह ‘फास्ट टैग’ है। गाड़ी में उसे लगा लेने के बाद टोल (Toll) नाके पर पैसा नहीं देना पड़ता। निर्धारित पैसा बैंक ख़ाते से अपने आप कट जाता है।” यह सुनकर वे आदेशात्मक लहज़े में बोलीं, “हमारी गाड़ी में (Fast Tag) चाहिए, तुरन्त।” हमने उनके आदेश को स्वीकार किया। उनके पुत्र डॉक्टर भरत पाठक को इस बाबत बताया और उन्होंने इसकी व्यवस्था कर दी। एक सप्ताह के भीतर हमारी माता जी की गाड़ी में फास्ट टैग लग गया। और अब वे सन्तुष्ट हैं क्योंकि उनकी गाड़ी टोल नाके पर कहीं रुकती नहीं।
हालाँकि मेरे दिमाग में यह प्रसंग कहीं जा अटका था और आज जब ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” का सन्दर्भ आया तो याद हो आया। क्यों? क्योंकि इससे एक बात तो एकदम स्पष्ट है कि महिलाओं में स्वावलम्बन का जज़्बा, आत्मनिर्भरता का यह इरादा जन्मजात होता है। उनके व्यक्तित्व में यह गुण समाहित है। जब भी उनका गुण ठाँठें मारकर बाहर निकलने को होता है, तो क्या परिवार, क्या समाज और क्या सरकार। सबको महिलाओं के इरादे के साथ ही कदमताल करनी पड़ती है। और वे करते हैं। क्योंकि यह शक्ति है महिला की। बस, ज़रूरत इतनी होती है कि महिलाएँ समय रहते अपनी इस शक्ति को पहचानें। इसे ख़ुद स्वीकृति दें।
‘स्वच्छ भारत अभियान’ का प्रतिनिधि चेहरा (Brand Ambassador) होने के नाते देश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मेरा लगातार जाना होता है। तमाम खेलती, पढ़ती, बढ़ती बालिकाओं से मिलना होता है। उनकी भावनाओं को, विचारों को, मन की बातों को जानने का अवसर मिलता है। तब हमें लगता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार जैसे विषयों पर उन सबकी रुचि बढ़ रही है। वे जागरूक हो रही हैं। वह और पढ़ना-बढ़ना चाहती हैं। उन्हें सही समय पर सही सलाह मिल जाती है तो वे नित नए कीर्तिमान स्थापित कर सकती हैं। कर लेती हैं और कर भी रही हैं। जरूरत इस बात की है कि हम उन्हें जानें, समझें, फिर समझाएँ। हम जहाँ रह रहे हैं, पढ़ रहे हैं, वहाँ के आस-पास के क्षेत्र में कोई बालिका या महिला अशिक्षित न रहे, अस्वस्थ न रहे, असुरक्षित न रहे, अभावग्रस्त न रहे, वह अपने जीवन को सार्थक बना सके, ऐसा हम-सब मिलकर प्रयास करें।
इस ‘महिला दिवस’ पर अगर हम यह संकल्प लेते हैं, इस दिशा में कदम बढ़ाते हैं, तो परिवार, समाज और राष्ट्र के निर्माण की तरफ हमारी यह सबसे सार्थक पहल होगी। शुभकामनाएँ!
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(डॉक्टर नन्दिता पाठक समाजसेवी हैं। ‘भारत रत्न’ नानाजी देशमुख के साथ दीनदयाल शोध संस्थान, चित्रकूट में कई वर्षों तक सक्रिय रूप से सेवारत रही हैं। फिलहाल केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के ‘स्वच्छ भारत’ और ‘निर्मल गंगा’ अभियानों से जुड़ी हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के लिए अहम अवसरों पर अक्सर अपने विचारपूर्ण लेख भेजती रहती हैं।)
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