टीम डायरी
यूँ होता है, जब आप अपनी विधा में महारत हासिल कर लेते हैं। इस ढाई मिनट के वीडियो में न कोई न सुर है, न ताल। बस, एक कविता पढ़ी जा रही है। लेकिन…
लेकिन अगर आप गौर करेंगे, इस कविता में लय भी पाएँगे, ताल भी और सुर भी। दूसरे शब्दों में कहें तो पूरा संगीत अमूर्त रूप से कानों में गूँजता सुनाई देगा। आँखों के सामने तैरता भी दिख जाए, तो कोई बहुत अचरज की बात नहीं।
पूरी कविता के छन्द पाँच मात्राओं में निबद्ध हैं। और आख़िर तक पहुँचते-पहुँचते इस काव्य पाठ की ख़ूबसूरती को जानी-मानी शास्त्रीय नृत्यांगना और अभिनेत्री विदुषी अर्चना जोगलेकर यूँ खोलकर छिटका देती हैं कि सुनने वाला ‘वाह-वाह’ किए बिना न रहे।
मगर फिर ख़्याल कीजिएगा, बरसों की साधना, तपस्या से यह महारत, ये ‘वाह-वाह’ हासिल हो पाती है।
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(नोट : इस वीडियो को #अपनीडिजिटलडायरी के पन्नों का जगह देने का मक़सद किसी कॉपीराइट का उल्लंघन करना नहीं है। बल्कि संगीत, साहित्य, संस्कृति, परम्परा से जुड़े डायरी के सरोकारों, उनके प्रचार-प्रसार में सहयोग देने के मकसद से इसे यहाँ जगह दी गई है। ताकि डायरी के पाठक भी इससे लाभान्वित हों, प्रेरणा ले सकें।)
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