कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल का डिज़ाइन किसने बनाया था?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 30/9/2021

बग़ावत के बाद भी अंग्रेज प्रशासकों, सैनिकों, सैन्य अफ़सरों आदि ने अपने पूर्ववर्तियों की साहित्यिक परंपरा जारी रखी। इनमें ज़्यादातर लोगों की कृतियाँ इतिहास और प्रशासन पर केंद्रित थीं। डब्ल्यूडब्ल्यू हंटर का नाम इनमें प्रमुख है। उन्होंने भारतीय इतिहास को खँगाला। मौलिक दृश्यों से भी तत्त्व निकाले। ऐसे ही, जॉर्ज ओट्‌टो ट्रेवेलियन की पुस्तक ‘कॉम्पटीशन-वल्लाह’ (1864)। इसमें 1857 की क्रांति के बाद के माहौल का चित्रण-विवरण है। अंग्रेज अफ़सरों में कुछ अपनी विशिष्ट शैली में लिखते थे। जैसे- एसएस थोरबर्न। उनकी किताब- ‘मुसलमंस एंड मनीलेंडर्स’ 1886 में आई। यह पंजाब प्रांत पर केंद्रित थी। मग़र इसे कर्ज़ में दबे किसानों की दशा मानवीय दृष्टिकोण से उजागर करने वाली श्रेष्ठ कृति भी माना जाता है। सर अल्फ्रेड लॉयल ने भी अपनी खास शैली में कविताएँ लिखीं। इतिहास पर भी लिखा।

वायसराय लॉर्ड कर्ज़न के कार्यकाल में सरकारी अफ़सरों को साहित्यिक लेखन के लिए खूब प्रोत्साहन मिला। इससे ईजे बक की ‘शिमला: पास्ट एंड प्रेजेंट’ (1904) और एचई बस्टीड की ‘इकोज़ फ्रॉम ओल्ड कैलकटा’ (1908) जैसी कृतियाँ सामने आईं। भारत में 1860 के बाद यूरोपीय समुदाय का आकार काफ़ी बढ़ चुका था। अंग्रेजी पढ़ने-लिखने वाले भारतीयों की संख्या भी अच्छी थी। वे ब्रिटिश समुदाय के जीवन से जुड़ी कहानियाँ पढ़ना चाहते थे। ब्रिटेन और ब्रिटिश-भारतीय समुदाय में भारत से जुड़े किस्से-कहानियों में दिलचस्पी थी। दोतरफ़ा माँग का बाज़ार तैयार था। इसके प्रभाव से कई रोचक उपन्याास आदि प्रकाशित हुए। जैसे- एचएच कनिंघम का ‘क्रॉनिकल्स ऑफ दस्तीपुर’ (1879)। इसमें काफ़ी दिलचस्प विवरण है कि अंग्रेज अपनी रिहाइशों में कैसे सयानेपन से रहते थे। इसी तरह एडवर्ड हेमिल्टन ऐकेन (ईएचए) की पुस्तक ‘बिहाइंड द बंगलॉ’ (1901) भी थी। जॉर्ज रॉबर्ट एबेरिफ़ मैके की, ‘ट्वेंटी-वन डेज़ इन इंडिया’ के अंश तो पहले बम्बई के एक अख़बार में प्रकाशित हुए थे। बिना किसी नाम के, 1880 में।  

रुडयार्ड किपलिंग आँग्ल-भारत के सबसे प्रतिष्ठित साहित्यकार हुए। उन्होंने पाठकों तक अपनी ऐसी पहुँच बनाई कि तब सोची भी नहीं जा सकती थी। किपलिंग ने भारत में रह रहे ब्रिटिश समुदाय के उथले जीवन को अपनी रचनाओं में प्रदर्शित किया। हिंदुस्तान छोड़ने के बाद उन्होंने ‘किम’ नामक उपन्यास लिखा था। वह किसी अंग्रेज द्वारा भारत के बारे में की सर्वश्रेष्ठ कल्पनाशील रचनाओं में गिना जाता है। इसके बाद कई लेखकों ने किपलिंग का अनुसरण किया। इन्हीं में थीं- फ्लोरा एनी स्टील। उनकी 1806 में आई उपन्यास, ‘ऑन द फेस ऑफ़ द वॉटर’, 1857 की क्रांति पर आधारित थी। 

हालाँकि भारतीयों और उनके जीवन से जुड़े पहलुओं को प्रदर्शित करने का पहला सशक्त प्रयास पत्रकार, लेखक एडमंड कैंडलर ने किया। पुस्तक ‘श्रीराम, रिवॉल्यूशनिस्ट’ के ज़रिए। ब्रिटिश शासन के आख़िरी 25 सालों में दो उपन्यासकारों ने अपनी रचनाओं में भारत के ब्रिटिश जनजीवन को खूबसूरती से उभारा। इनमें एक थे ईएम फॉस्टर। उनके लोकप्रिय उपन्यास ‘ए पैसेज टु इंडिया’ में ‘आँग्ल-भारतीय समुदाय’ और उसके पूर्वाग्रहों पर खुलकर हमला किया गया। वहीं, एडवर्ड थॉम्पसन के उपन्यास 1930 के दशक में बिखरते ब्रिटिश साम्राज्य का सही भान करा रहे थे। 

बहुत से लेखक हल्की-फुल्की कविताएँ भी लिख रहे थे। जैसे- किपलिंग की ‘डिपार्टमेंटल डिटीज़’ (1886)। इनमें से अधिकांश में ब्रिटिश समुदाय पर चुटीला हास्य अंतर्निहित था। 

कला, वास्तुशिल्प भी नए दौर के बदलाव का साक्षी बन रहा था। साल 1870 तक कैमरा आँखों और हाथों की जगह ले चुका था। चित्रकारी पर फोटोग्राफी हावी होने लगी थी। इस दौर में बम्बई लोक सेवा के एक अधिकारी थे, विलियम जॉन्सन। उन्होंने 1863 की शुरुआत में एक किताब तैयार की। शीर्षक था, ‘ओरिएंटल रेसेज़ एंड ट्राइब्ज़’। इसमें पूरे छायाचित्र ही थे। फिर 1868 में एक किताब आई, ‘द पीपुल ऑफ इंडिया : ए सीरीज़ ऑफ फोटोग्राफ़्स एंड इलस्ट्रेशंस विथ डिस्क्रिप्टिव लैटरप्रेस ऑफ द रेसेज़ एंड ट्राइब्ज ऑफ हिंदुस्तान’। इसके संपादक थे, जेएफ वॉट्सन और जेडब्ल्यू काय। वे लिखते हैं, “वायसराय लॉर्ड कैनिंग और उनकी पत्नी की इच्छा थी कि वे जब कार्यकाल पूरा करने के बाद लंदन लौटें तो उनके पास भारतीय जन-जीवन की सहेजी हुई यादें हों। वे इन स्मृतियों को तस्वीरों, दृष्टांतों आदि के रूप में सहेजना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारतीय सेवाओं के उन अफ़सरों को प्रोत्साहित किया, जो फोटोग्राफी का शौक रखते थे। उन्हें सहायता, संरक्षण भी दिया। जिससे कि वे बाहर निकलें, घूमें, फिरें ओर तमाम दिलचस्प विषयों की तस्वीरें खींच सकें। उन्हें संग्रहीत कर सकें।” 

हालाँकि भारतीय सेवाओं में कुछ ग़ैर-पेशेवर कलाकार चित्रकला में अब भी हाथ आज़मा रहे थे। इनमें लियोनेल एडवर्ड्स का नाम प्रमुख था। उन्होंने भारत में ब्रिटिश जीवनशैली से जुड़े अच्छे चित्र बनाए।

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भारत में 19वीं सदी के आख़िर तक सार्वजनिक वास्तुशिल्प में विक्टोरियाई इंग्लैंड की झलक मिलने लगी थी। इस वास्तुशिल्प को आकार देने का काम लोकनिर्माण विभाग कर रहा था। उसने ऐसी तमाम इमारतें बनाईं, जो पश्चिम के वास्तुशिल्प की हू-ब-हू नकल लगती थीं। इनमें नव-जर्मन शिल्प की झलक थी, तो आभासी-इतालवी पुनर्जागरण काल की भी। 

भारत के अतीत को संरक्षित करने की तरफ़ वायसराय लॉर्ड कर्जन ने काफ़ी ध्यान दिया। भारतीय इमारतों का उन्होंने पुनरुद्धार कराया। उनमें यूरोपीय शैली के मिश्रण को प्रोत्साहित किया। कलकत्ता का विक्टोरिया मेमोरियल हॉल उनके दौर में हुए काम का अच्छा उदाहरण है। सफेद संगमरमर से बनी इस इमारत के शिल्प में इतालवी-पुनर्जागरण की शैली दिखती है। साथ ही, गुंबद व अन्य बारीक नक्काशियों में पुरबिया शैली भी। इस इमारत का खाका ब्रिटिश शिल्पकार सर विलियम एमरसन ने खींचा था। 

अंग्रेजों ने 1912 में अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाने का फ़ैसला किया। तब उन्होंने नई राजधानी, वहाँ की सरकारी इमारतों आदि की रूपरेखा तैयार करने के लिए दो शिल्पकारों- सर एडविन लुटियंस और सर हरबर्ट बेकर को तैनात किया। उन्होंने शानदार भव्य इमारतों को आकार दिया, जो आज भी मुग़ल और पारंपरिक शिल्पकला के मिश्रण का शानदार नमूना हैं। 

वैसे, कलकत्ता और अन्य जगहों पर जो उच्चस्तरीय वास्तुशिल्प के नमूने सामने आए, वे अंग्रेजों की अपनी संतुष्टि के लिए अधिक थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने रेलवे स्टेशनों आदि के निर्माण में जो शैली अपनाई, वह भारतीयों की अवमानना का भाव लिए थी। अंग्रेजों की नस्लीय श्रेष्ठता स्थापित करने की मंशा वाली थी। फिर जब अंग्रेजों ने दिल्ली को नया आकार दिया तो यह मंशा पूरे जोर पर दिखी।
(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
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(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
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पिछली कड़ियाँ : 
44. भारतीय स्मारकों के संरक्षण को गति देने वाले वायसराय कौन थे?
43. क्या अंग्रेज भारत को तीन हिस्सों में बाँटना चाहते थे?
42. ब्रिटिश भारत में कांग्रेस की सरकारें पहली बार कितने प्रान्तों में बनीं?
41.भारत में धर्म आधारित प्रतिनिधित्व की शुरुआत कब से हुई?
40. भारत में 1857 की क्रान्ति सफल क्यों नहीं रही?
39. भारत का पहला राजनीतिक संगठन कब और किसने बनाया?
38. भारत में पहली बार प्रेस पर प्रतिबंध कब लगा?
37. अंग्रेजों की पसंद की चित्रकारी, कलाकारी का सिलसिला पहली बार कहाँ से शुरू हुआ?
36. राजा राममोहन रॉय के संगठन का शुरुआती नाम क्या था?
35. भारतीय शिक्षा पद्धति के बारे में मैकॉले क्या सोचते थे?
34. पटना में अंग्रेजों के किस दफ़्तर को ‘शैतानों का गिनती-घर’ कहा जाता था?
33. अंग्रेजों ने पहले धनी, कारोबारी वर्ग को अंग्रेजी शिक्षा देने का विकल्प क्यों चुना?
32. ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

 

 

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