बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं, मुस्कुरा उठते हैं, क्यों?

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 14/9/2021

एक बार बुद्ध के पास मौलुंकपुत्त नामक व्यक्ति आया। उसने बुद्ध से पूछा कि क्या वाक़ई ईश्वर है? 

बुद्ध ने ज़वाब दिया, “क्या वाक़ई में तुम्हें जानने की इच्छा है कि ईश्वर है या नहीं? या फिर तुम ऐसे ही पूछ रहे हो?” 

मौलुंकपुत्त ने बुद्ध से कहा, “बिल्कुल जानना है, मैं इतनी दूर आप से यही जानने आया हूँ।” 

मौलुंकपुत्त को लगा कि बुद्ध उसे गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं, तो उसने कहा, “मैंने कई विद्वानों से इस प्रश्न का ज़वाब माँगा। लेकिन कभी मिला नहीं।”  

तब बुद्ध ने कहा, “अगर तुम्हें अपना उत्तर चाहिए तो दो वर्षों के लिए चुपचाप मेरे पास बैठो। इन दो सालों में तुम्हें कुछ नहीं बोलना है। कोई प्रश्न नहीं करना है। यदि किसी तरह की जिज्ञासा भी हो तो उसका उत्तर नहीं माँगना है। जब तुम्हें दो साल मौन रखे हुए हो जाएँगे, तो उसके बाद मैं तुमसे पूछूँगा। तब तक यदि तुम्हारी जिज्ञासा ऐसी ही बनी रही, तो अपना सवाल पूछ लेना।” 

मौलुंकपुत्त बुद्ध की यह बात सुनकर थोड़ा घबराया। उसे लगा कि जान देना तो आसान है, लेकिन दो साल मौन बैठना कठिन कार्य है। परन्तु उसने बुद्ध की इस शर्त को मान लिया। उसने जैसे ही बुद्ध की इस शर्त को माना, दूसरे वृक्ष के पास बैठा एक साधु जोर-जोर से हँसने लगा। 

मौलुंकपुत्त ने पूछा, “भाई तुम क्यों हँस रहे हो?” तो साधु ने उत्तर दिया, “जैसे तू आज फँसा है, वैसे मैं भी फँस चुका हूँ। मैं भी कुछ पूछने आया था लेकिन इन्होंने कहा- दो साल चुप रहो। फिर जो पूछना हो, पूछ लेना। लेकिन दो साल बाद मेरे पास कुछ पूछने को बचा ही नहीं। इसलिए तुझे चेतावनी दे रहा हूँ कि जो कुछ पूछना है, अभी पूछ ले। बाद में तो तू पूछने लायक रहेगा ही नहीं।” 

बुद्ध ने दोनों की बातें सुनकर मौलुंकपुत्त से कहा, “देखो मैं दो साल बाद भी अपने वादे पर रहूँगा। तुम जो पूछोगे, मैं उसका उत्तर दूँगा। अगर नहीं पूछोगे, तब भी तुम्हें याद दिलाऊँगा कि तुम्हें कुछ पूछना है।” 

इसके बाद मौलुंकपुत्त मौन हो गया। एक-एक दिन कर दो साल बीत गए। समय बीतने के बाद बुद्ध ने कहा, “मौलुंकपुत्त उठ, तुझे जो पूछना है पूछ ले।” 

यह सुनकर मौलुंकपुत्त हँसने लगा। बोला, “उस साधु ने सही कहा था। दो साल तक मेरी चुप्पी से मुझमें इतनी गहराई आ गई, ऐसा बोध जमा हो गया कि विचार धीरे-धीरे खो गए। वर्तमान में डुबकी लगाई और फिर जिस ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसके लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूँ। अब मेरे मन में कोई सवाल नहीं है।” 

महान ज्ञानियों, साधु-सन्तों ने कहा है कि जिस सवाल का ज़वाब हम जीवनभर दुनिया में ढूँढ़ते हैं, वास्तव में उसका हल शून्य से मिलता है। मौन में मिलता है। शान्ति से मिलता है। इस अवस्था में जब हम ख़ुद में झाँकते हैं, तब पता लगता है कि सभी उत्तर तो अन्दर ही हैं। और फ़िर हमारे सभी प्रश्न समाप्त हो जाते हैं। 

मौन की अवस्था से पहले हम पूछते हैं। हज़ारों प्रश्न होते हैं। लेकिन विचारों की शून्यता और ध्यान की गहनता के बाद हम कुछ कहते ही कहाँ हैं? शब्द रहते ही कहाँ हैं? मुखरता कहाँ बचती है। हाँ, रहता है तो केवल मौन। रह जाता है तो केवल बुद्ध। रह जाता है, तो केवल बौद्ध। 

बुद्ध चुप हो कह उठते हैं कि कुछ प्रश्नों का उत्तर केवल मौन है। इसलिए बुद्ध कुछ प्रश्नों पर मौन हो जाते हैं। चुप हो जाते हैं। मुस्कुरा उठते हैं। कैसे कहें जो तुम पूछ रहे हो वह भाषा का, शब्दों का, कथनों का विषय नहीं है। मौन से उसे जानो… समझो…अनुभव करो…!
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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। वे #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापक सदस्यों में से हैं। यह लेख, उनकी ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की 28वीं कड़ी है।)
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अनुज राज की ‘भारतीय दर्शन’ श्रृंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं…

27वीं कड़ी : महात्मा बुद्ध आत्मा को क्यों नकार देते हैं?
26वीं कड़ी : कृष्ण और बुद्ध के बीच मौलिक अन्तर क्या हैं?
25वीं कड़ी : बुद्ध की बताई ‘सम्यक समाधि’, ‘गुरुओं’ की तरह, अर्जुन के जैसी
24वीं कड़ी : सम्यक स्मृति; कि हम मोक्ष के पथ पर बढ़ें, तालिबान नहीं, कृष्ण हो सकें
23वीं कड़ी : सम्यक प्रयत्न; बोल्ट ने ओलम्पिक में 115 सेकेंड दौड़ने के लिए जो श्रम किया, वैसा! 
22वीं कड़ी : सम्यक आजीविका : ऐसा कार्य, आय का ऐसा स्रोत जो ‘सद्’ हो, अच्छा हो 
21वीं कड़ी : सम्यक कर्म : सही क्या, गलत क्या, इसका निर्णय कैसे हो? 
20वीं कड़ी : सम्यक वचन : वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है 
19वीं कड़ी : सम्यक ज्ञान, हम जब समाज का हित सोचते हैं, स्वयं का हित स्वत: होने लगता है 
18वीं कड़ी : बुद्ध बताते हैं, दु:ख से छुटकारा पाने का सही मार्ग क्या है 
17वीं कड़ी : बुद्ध त्याग का तीसरे आर्य-सत्य के रूप में परिचय क्यों कराते हैं? 
16वीं कड़ी : प्रश्न है, सदियाँ बीत जाने के बाद भी बुद्ध एक ही क्यों हुए भला? 
15वीं कड़ी : धर्म-पालन की तृष्णा भी कैसे दु:ख का कारण बन सकती है? 
14वीं कड़ी : “अपने प्रकाशक खुद बनो”, बुद्ध के इस कथन का अर्थ क्या है? 
13वीं कड़ी : बुद्ध की दृष्टि में दु:ख क्या है और आर्यसत्य कौन से हैं? 
12वीं कड़ी : वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध का पुनर्जन्म और धर्मचक्रप्रवर्तन 
11वीं कड़ी : सिद्धार्थ के बुद्ध हो जाने की यात्रा की भूमिका कैसे तैयार हुई? 
10वीं कड़ी :विवादित होने पर भी चार्वाक दर्शन लोकप्रिय क्यों रहा है? 
नौवीं कड़ी : दर्शन हमें परिवर्तन की राह दिखाता है, विश्वरथ से विश्वामित्र हो जाने की! 
आठवीं कड़ी : यह वैश्विक महामारी कोरोना हमें किस ‘दर्शन’ से साक्षात् करा रही है?  
सातवीं कड़ी : ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे? 
छठी कड़ी : स्वयं को जानना है तो वेद को जानें, वे समस्त ज्ञान का स्रोत है 
पांचवीं कड़ी : आचार्य चार्वाक के मत का दूसरा नाम ‘लोकायत’ क्यों पड़ा? 
चौथी कड़ी : चार्वाक हमें भूत-भविष्य के बोझ से मुक्त करना चाहते हैं, पर क्या हम हो पाए हैं? 
तीसरी कड़ी : ‘चारु-वाक्’…औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए! 
दूसरी कड़ी : परम् ब्रह्म को जानने, प्राप्त करने का क्रम कैसे शुरू हुआ होगा? 
पहली कड़ी :भारतीय दर्शन की उत्पत्ति कैसे हुई होगी?

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