ऋषि कुमार सिंह, लखनऊ, उत्तर प्रदेश से
कभी सड़क के किनारे खड़े होकर दो मिनट के लिए अपने फोन की ऑडियो रिकार्डिंग ऑन कर दीजिए। फिर घर पहुँचकर, हाथ-मुँह धोकर, कुछ खा-पीकर उसे सुनिए। हमें लगेगा कि जैसे किसी युद्ध क्षेत्र से लौटे हैं अभी-अभी। सड़कों पर इतना शोर, इतनी बदहवासी? आखिर क्यों?
हम लखनऊ की ही क्या, किसी भी छोटे-बड़े शहरों की सड़कों पर से गुजर कर देख लें। आजमा लें। हमें हमारे बुजुर्गों की वह कहावत अक्सर याद हो आएगी कि, “धन पहली पीढ़ी में और तमीज तीसरी पीढ़ी में आती है।” सड़कों पर बदहवास भागते-दौड़ते और बेतमीज़ चिल्ल-पों करते लोगों को शायद लगता है कि दुनिया को अपनी ताकत का लोहा मनवाने का यही सही वक्त है। और तरीका भी।
ऐसे लोगों से निपटने के लिए नियमों-कानूनों को जमीन पर लागू करना जरूरी है। तेज आवाज करने वाले हाॅर्न, चकाचौंध करने वाली लाइट्स हटाना, रेड लाइट जम्प करने वालों का चालान काटना, सभी चौराहों पर स्पीड ब्रेकर बनवाना और अवैध हूटर वाली गाड़ियाँ जब्त करना, सब जरूरी है। नहीं तो सड़कें यूँ ही युद्ध का मैदान बनी रहेंगी!
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(पर्यावरण, राजनीति, समाज के मसलों पर ऋषि बेहद संज़ीदा क़िस्म के इंसान हैं। ऐसे मसलों लगातार ट्विटर जैसे मंचों पर अपनी बात रखते रहते हैं। वहीं से यह पोस्ट भी ली गई है, उनकी अनुमति से।)
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