प्रतीकात्मक तस्वीर
टीम डायरी, 13/3/2021
वीडियो में दिख रहा ये छोटा सा बच्चा दिल्ली के मयूर विहार स्थित रयान इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता है। धैर्य जोशी नाम है इसका। इसी 26 जनवरी की बात है, जब ये सज-धजकर अपने ‘गणतंत्र दिवस’ और उसकी अहमियत के बारे में चन्द पंक्तियाँ बोल रहा था। निश्चित रूप से उसके शिक्षकों या माता-पिता ने उसे ये पंक्तियाँ रटवाई होंगी। पर उसने उन्हें इस ख़ूबसूरती से निभाया कि वहाँ मौज़ूद लोग उसे अपने मोबाइल कैमरों में कैद करने से ख़ुद को रोक नहीं पाए।
वहीं दूसरी तरफ़ उसी दिन कुछ ‘बड़े लोग’ दिल्ली में ही लाल किले पर प्रदर्शन कर रहे थे। उनके लिए गणतंत्र दिवस जैसे मौके पर देश की, तिरंगे की शान बरकरार रखने से ज़्यादा ज़रूरी था अपने समुदाय, अपने संगठन की आन या कहें ‘अहं’ को तरज़ीह देना। जो उन्होंने दी भी। और इस अन्दाज़ में दी कि दुनिया दंग और देश की गणतांत्रिक व्यवस्था भंग हो गई। वक़्ती तौर पर ही सही। वीडियो वहाँ भी बने, जो सबने देखे और पक्ष-विपक्ष में अपनी-अपनी दलीलें भी दीं। फिर बात आई और चली गई।
पर ज़रा सोचकर देखें, यही ‘बड़े लोग’ जब बच्चे रहे होंगे, तो क्या उन्हें उनके माता-पिता, शिक्षकों ने गणतंत्र को ऐसे कलंकित करना सिखाया होगा? निश्चित तौर पर नहीं। इन ‘बड़े लोगों’ में से कई अपने बचपन में ऐसे, धैर्य की तरह ही, ख़ूबसूरती से गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस के मौकों पर देश की आन में, उसकी शान में पंक्तियाँ पढ़ चुके होंगे। मगर वे भूल गए। बढ़ती उम्र ने उनके होश पर जोश हावी कर दिया। उन्होंने अपना ‘धैर्य’ खो दिया और वे अपने राष्ट्रीय संस्कारों पर ख़ुद सवाल खड़े कर गए। ऐसे, जिनके ज़वाब शायद उन्हें ही बरसों तक नहीं मिलेंगे।
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(धैर्य का यह वीडियो #अपनीडिजिटलडायरी तक वॉट्सएप सन्देश के रूप में आया है।)
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