देखो प्रिय वसंत….

समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश

देखो प्रिय वसंत

जरा बाहर आओ मधुमास की सुबह है

कन्नौज के इत्रों से अधिक महक रहा

जाने अनजाने फूलों का यह वितान

वसंत के अमृत अनुभव का आमंत्रण है। 

झिझकती शीत और ग्रीष्म की उमगन

भीषण तप से पहले भ्रमरों का गुंजन

कोई अभ्यास नहीं यह पंचम स्वर, प्रिये

मिलन को विह्वल प्राणों की तड़पन है

——–
(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)

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