विकास, नई दिल्ली से
ज़बर्दस्त विरोधाभास है। भारत सरकार ‘स्वच्छतापखवाड़ा’ मना रही है। इस दौरान प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें #SayNoToPlastic जैसी हिदायतें दी जा रही हैं। हर साल ये उत्सव होता है। और दिलचस्प ये कि इसी दौरान भारत सरकार के एक मंत्रालय के साथ मिलकर प्लास्टिक की दुनिया में आने आह्वान किया जा रहा है। इसका बड़ा सा विज्ञापन हाल ही में ‘इकॉनॉमिक्स टाइम्स’अख़बार में छपा है।
सिर्फ़ यही नहीं, सरकारें ‘स्वच्छतापखवाड़ा’ जैसे आयोजनों के दौरान तमाम विभागों, दफ़्तरों में जागरुकता अभियान चलवाती हैं। पढ़े-लिखों को पढ़ाने-सिखाने के लिए। जहाँ वे एक निर्देश से प्लास्टिक बैन कर सकती हैं। प्रतिबंधित कर सकती हैं। लेकिन दिलचस्प ये कि इन अभियानों में स्टैंडी और पोस्टर छपते हैं तो वो भी प्लास्टिक शीट पर। यानि प्लास्टिक के इस्तेमाल से प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकने की शिक्षा।
जबकि प्लास्टिक को कम करने, पर्यावरण को बचाने की वाक़ई मंशा है तो होना ये चाहिए कि एयरकंडीशंड होटलों में बड़े-बड़े सम्मेलन नहीं, ज़मीन पर काम और कुछ त्याग किया जाए। ताकि बदलाव दिखे। मगर दुनियाभर की सरकारें तो हठी होती हैं न। वे नाकामी को नज़रअंदाज़ करके इस उम्मीद में ग़लत नीतियाँ जारी रखती हैं। इस ख़ुशफ़हमी में कि एक दिन वे सही भी साबित होंगी।
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