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चुनिन्दा पन्ने
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जनतंत्र में ‘जनता जनार्दन’ है, सभी को उसका निर्णय स्वीकार करना चाहिए
4 months ago
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‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा ज्यादा हो जाए, तो दवा जहर बन जाती है
4 months ago
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जो दिखता है, वही हमेशा सही नहीं होता, चाहे तो देख लीजिए!
4 months ago
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‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायनें भी मरा करती हैं, पता है तुम्हें
4 months ago
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गुजरात-दिल्ली की आग हमारे सीनों में क्यों नहीं झुलसती?
4 months ago
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मेहनती और संवेदनशील होने के बावज़ूद गधे को ‘गधा’ ही कहते हैं, क्योंकि…
4 months ago
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भावनाओं के सामने कई बार पैसों की एहमियत नहीं रह जाती, रहनी भी नहीं चाहिए!
4 months ago
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‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह खुद अपना अंत देख सकेगी… और मैं भी!
5 months ago
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सब छोड़िए, लेकिन अपना शौक़, अपना ‘राग-अनुराग’ कभी मत छोड़िए
5 months ago
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‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसने बंदरों के लिए खासी रकम दी थी, सबसे ज्यादा
5 months ago
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