एक-दूसरे के साथ हमारी संगत या संगति कैसी हो, इस मिसाल से समझिए!

टीम डायरी

जिसे भी देखिए, वो अपने आप में ग़ुम है। 
ज़ुबाँ मिली है, मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता।। 

यह मशहूर शेर हम में अधिकांश लोगों की ज़िन्दगी की सच्चाई है। हमें अक्सर लगता है कि हम जिन लोगों के साथ चल रहे हैं। जिनके हम हमराह हैं, हमक़दम हैं, वे हमारे साथ होकर भी संग में नहीं हैं। क्योंकि मुख़्तलिफ़ मसलों पर हमारे विचार नहीं मिलते। ख़्यालात नहीं मिलते। कोई एक ज़ुबाँ बोलता है, तो दूसरा दूसरी।  

ऐसे मामलों में हमें समझ नहीं आता कि हमें करें तो आख़िर क्या? अलबत्ता, शास्त्रीय संगीत की इस महफ़िल की नज़र से देखें तो हमें हमारे इस सवाल का ज़वाब का मिल सकता है। अपनी डिजिटल डायरी (#ApniDigitalDiary) के पॉडकास्ट ‘डायरीवाणी’  (#DiaryWani) में इस बात की मिसाल मौज़ूद है कि ज़िन्दगी में एक-दूसरे के साथ हमारी संगत या संगति कैसी होनी चाहिए। 

सुनिएगा…..  

डायरीवाणी के पिछले पॉडकास्ट (सुन सकते हैं) 

2- ज़िन्दगी में ‘मूड’ नहीं, बल्कि हमारा ‘मूव’ मायने रखता है
1- अहम मौक़ों अपने ज़मीर की सुनिए, तारीख़ में नायक बनेंगे!

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Neelesh Dwivedi

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