टीम डायरी
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट संसद में पेश हो चुका है। कुछ दिनों में पारित भी हो जाएगा। इस बजट के बारे में काफी चर्चाएँ हो चुकीं। लेकिन एक मसले पर अब तक भी कोई ज्यादा बात नहीं हुई। वह है बुज़ुर्गों के ‘आयुष्मान’ का मसला।
जो लोग देश की राजनीति पर थोड़ी भी निगाह रखते हैं, उन्हें ध्यान होगा कि अभी लोकसभा चुनाव के दौरान मई में भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी घोषणा पत्र को संकल्प-पत्र के रूप में जारी किया था। संकल्प यानि वह वचन, जिसे पूरा करना अनिवार्य-सा होता है। तो इस संकल्प-पत्र में भाजपा ने कुल 24 संकल्प किए थे, उन्हें ‘मोदी की गारंटी’ भी कहा गया। मतलब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से दी गई गारंटी कि जो कहा, वह करेंगे ही।
इन्हीं 24 गारंटियों में एक यह थी 70 साल से अधिक उम्र के सभी बुज़ुर्ग नागरिकों को ‘आयुष्मान भारत योजना’ का लाभ दिया जाएगा। वह भी मुफ़्त। इस योजना के तहत ‘आयुष्मान कार्ड’ बनवा लेने पर सभी बुज़र्गों को देश के तमाम चिह्नित अस्पतालों में पाँच लाख रुपए तक के इलाज़ की सुविधा मिलेगी, ऐसी ‘मोदी की गारंटी’ थी। नई लोकसभा का गठन होते ही जब संसद का संयुक्त सत्र हुआ तो राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इसे प्रमुखता से शामिल किया गया। तब ये उम्मीद बँधी कि बजट में इस ‘गारंटी’ के पूरा होने का इंतिज़ाम हो ही जाएगा।
मगर हुआ क्या? वित्त मंत्री के बजट भाषण में ‘मोदी की इस गारंटी’ का ज़िक्र भी नहीं आया। लिहाज़ा, कुछ ख़बरनवीसों ने सरकारी तंत्र में पूछताछ की तो उन्हें बताया गया कि अभी “इस योजना के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी ही नहीं मिली है। जब मिलेगी, उसके बाद उस पर काम होगा और बजट आवंटित होगा। इसमें समय लगेगा।”
ग़ौर कीजिए, यह कोरा ज़वाब तब मिला है जब भारत में 42 करोड़ लोगों के पास ‘स्वास्थ्य बीमा’ की सुरक्षा नहीं है। और इस आबादी में निश्चित ही बुज़ुर्गों की तादाद अधिक होगी क्योंकि बीमा कम्पनियाँ 70 से अधिक उम्र वालों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ अव्वल तो देती नहीं और देती भी हैं तो मुश्किल से तथा बेहद कठिन शर्तों के साथ।
बावजूद इसके कि देश की आबादी में 70 साल से ऊपर के बुज़ुर्गों की तादाद भी कोई कम नहीं है। वर्ल्ड डेटा एटलस के एक अनुमान के मुताबिक, 2020 में ऐसे नागरिकों की संख्या भारत में 5.24 करोड़ से अधिक थी। यह आँकड़ा 4.60 प्रतिशत प्रतिवर्ष सालाना वृद्धि के हिसाब से 2024 में निश्चित रूप से 6 करोड़ तो पार कर ही गया होगा। फिर भी इतनी बड़ी आबादी को अभी किसी ‘गारंटी’ का सहारा नहीं है। यह बेहद सोचनीय बात है।
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