समीर शिवाजी राव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
यक़ीन दिलाता है तुम्हारा सजदा,
कि जीत लिया तुमको मैंने, हरदम के लिए।
अब नहीं रोक सकता मुझे कोई,
मुक्ति की अपनी राह, ख़ुद चुनने के लिए।
तुमसे आज़ाद होने की हर राह पर,
हौसला अफ़ज़ाई, तुम ही होती हो।
और नाकाम होती है मेरी हर कोशिश,
कि ख़ुदी भी मेरी अपनी नहीं, तुम होती हो।
माया….., तुम्हारा हर सजदा,
मेरी ग़ैरत को खाक किए जाता है।
कितनी बार झुकती रहोगी तुम?
इस आभासी जीत और सच्ची हार से,
मुझे रू-ब-रू कराने के लिए?
——
#अपनीडिजिटलडायरी के साथ उसकी शुरुआत से ही जुड़े समीर शिवाजीराव पाटिल ने ये लाइनें लिखी हैं। उनकी इन लाइनों में जो ‘माया’ है न, वो हम सबके सजदे में झुकी है, ऐसा आभास देती है। उसके यूँ झुक जाने से हमें लगता है कि हमने उसे जीत लिया है। लेकिन इस ‘माया’ से भी भला कोई जीत सका है?
——
नीलेश द्विवेदी की आवाज़ में आपने इन लाइनों को #अपनीडिजिटलडायरी के पॉडकास्ट #डायरीवाणी पर सुना। #अपनीडिजिटलडायरी…. बस, एक पन्ना ज़िन्दगी।
बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More
एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More
देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More
तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More
छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More
शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More