दिमाग़ हमेशा आराम चाहता है, मगर अस्ल आराम आख़िर है क्या?

टीम डायरी

अमेरिका में हुए शोध अध्ययनों के हवाले से आज अख़बारों में दो दिलचस्प ख़बरें प्रकाशित हुई हैं। इनमें से एक में बताया गया है कि हमारा दिमाग़ हमेशा आराम चाहता है। इसलिए वह हमेशा सुस्ताने के रास्ते ढूँढ़-ढूँढ़कर हमें दिखाता रहता है। हम उसके जाल में फँस जाते हैं, और अपना बहुत सारा वक़्त यूँ बिना किसी काम के ही ख़राब कर देते हैं। जबकि सही मायने में हमारे लिए सुस्ताने या आराम करने का हर 24 घंटे में एक वक़्त तय है। वह है, रात के आठ घंटों का। यानी उसके अलावा हम जितनी भी बार बिना किसी काम के बैठे रहते हैं, सुस्ताते हैं, या झपकी मारते हैं, वास्तव में वह हमारे वक़्त की बर्बादी ही ज़्यादा है। इससे कोई विशेष लाभ नहीं होता। जबकि दिमाग़ हमें जब दो घड़ी सुस्ता लेने का रास्ता दिखाता है, तो उसका सबसे प्रबल तर्क ही ये होता है, इस तरह हमारी ऊर्जा बचेगी, संचित होगी। उसे हम आगे अपने मुख्य काम में बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर सकेंगे। 

हालाँकि, ऐसे में सवाल हो सकता है कि क्या व्यक्ति को फिर, नियमित दिनचर्या में हर वक़्त कोल्हू के बैल की तरह जुते ही रहना चाहिए? तो नहीं, ऐसा भी नहीं है। दूसरे शोध में बताया गया है कि हमें अपनी नियमित दिनचर्या को बीच-बीच में तोड़ते रहना चाहिए। वर्ना, हम बोरियत के शिकार हो जाते हैं और हमारी उत्पादकता कम हो जाती है। धीरे-धीरे हमें अपनी उस दिनचर्या से अरुचि भी होने लगती है, जो हमारे जीवनयापन आदि के लिए बहुत ज़रूरी होती है। लिहाज़ा, इस स्थिति से बचने के लिए नियमित दिनचर्या को रोज़ ही किसी न किसी तरह से तोड़ना अच्छी बात है। मगर बिना काम के सुस्ताते हुए या एक-दो घंटे बिस्तर पर लम्बे होकर नहीं। 

नियमित दिनचर्या तोड़ने का बेहतर विकल्प ये है कि हम दिन, सप्ताह, महीने और साल का एक तय वक्त अपने शौक़ आदि को दें। घूमने-फिरने जाएँ, किताबें पढ़ें, दोस्तों के साथ समय बिताएँ, संगीत सुनें, बाग़बानी करें, कोई साज़ बजाने में रुचि है तो उसका अभ्यास करें, चित्रकारी करें, व्यायाम करें, खेलों में भाग लें। यानी ऐसा कुछ भी, जो हमारी नियमित दिनचर्या से एकदम अलग हो। ऐसा करने से हमारा दिमाग़ रचनात्मक रूप से सक्रिय रहेगा। उसमें नए, सकारात्मक विचार अपने आप आएँगे। साथ ही हमारा शरीर भी स्वस्थ और नीरोगी रहेगा।

है न ‘रोचक-सोचक’ जानकारी। तो रुचि लेकर चाव से पढ़िए और सोचिए कि दिमाग़ के जाल में फँसने के बजाय उसे अपनी सटीक और सकारात्मक गतिविधियों, कार्ययोजनाओं में कैसे व्यस्त रखना है।

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

2 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

4 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

5 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

6 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

7 days ago