हमारी सोच और ईश्वर का न्याय

रैना द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 30/12/2020

अक्सर हम ईश्वर के न्याय पर सवाल उठाते हैं। हमारी यह मनोदशा खास तौर पर उस समय होती है, जब हमें लगता है कि हमारे साथ अन्याय हुआ है। ऐसे मौकों पर हम हमेशा सोचते हैं कि हमने तो कभी किसी के साथ गलत किया नहीं। फिर हमें ही ईश्वर ने तकलीफ़ क्यों दी? हमें औरों से कम क्यों दिया? वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों काे हम हमेशा गलत करते देखते हैं, उन्हें सुख भोगते हुए पाते हैं। तब फिर हमारे मन में सवाल उठते हैं कि ईश्वर उन्हें पीड़ित-प्रताड़ित क्यों नहीं करते?

ये द्वंद्व पूरी ज़िन्दगी मानव जीवन में चलता रहता है। हर किसी के साथ। यहाँ ये कहानी ऐसे तमाम सवालों के ज़वाब देती है। हमें सोचने पर मजबूर करती है कि ईश्वर के न्याय के पर सवाल उठाना आखिर कितना सही है। और ये भी कि क्या वाकई उनके न्याय पर कोई सवाल हो भी सकता है? इनका उत्तर ‘नहीं’ में ही है, सब जानते हैं, पर फिर भी सवाल होते हैं। बस इसलिए क्योंकि हमारी दृष्टि और ईश्वर के दृष्टिकोण में भेद होता है। हम सिर्फ अपने गुण देखते हैं। ईश्वर सृष्टि का कण-कण देखकर न्याय करते हैं।

इस कहानी का सार यही है। सबके सुनने लायक, सबके गुनने लायक।

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(रैना द्विवेदी, भोपाल में रहती हैं। गृहिणी हैं। वे व्हाट्स एप वीडियो सन्देश के जरिए अपनी कहानियों के वीडियो #अपनीडिजिटलडायरी को भेजती हैं।)

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