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आरसीबी हादसा : उनकी नज़र में हम सिर्फ़ ‘कीड़े-मकोड़े’, तो हमारे लिए वे ‘भगवान’ क्यों?

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

एक कामकाजी दिन में किसी जगह तीन लाख लोग कैसे इकट्‌ठे हो गए? इसका मतलब तो यही हुआ कि या तो हमारे पास कोई ढंग का काम-धाम है ही नहीं, या फिर क्रिकेट के प्रति ज़नून सभी हदें पार कर चुका है। दोनों में से कोई भी स्थिति हो, चिन्ताजनक है। क्येां? क्येांकि हम-आप भले ही क्रिकेट और क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रशंसक हों, पर उनके लिए हमारी हैसियत कीड़े-मकोड़ों से अधिक नहीं है। उन्हें हमसे हमारा पैसा चाहिए, लेकिन उनके लिए हमारी ज़िन्दगी की कीमत एक फूटी कौड़ी के बराबर भी नहीं है। 

कई बार यह बात साबित हुई है। बुधवार, चार अप्रैल को बेंगलुरू में हुई (रॉयल चैलेन्जर्स बेंगलुरू के ज़श्न के दौरान)  भगदड़ के दौरान एक बार फिर यही बात सोलह आने सही सिद्ध हुई। वरना, 11 निर्दोष लोगों की जान चली जाने के बाद भी कोई ज़श्न कैसे मनाता रह सकता था? तो अब इसका ज़िम्मेदार किसे माना जाए? भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड को? आरसीबी को? बेंगलुरू पुलिस को? या फिर नेताओं को?   

आज सब एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ झाड़ रहे हैं। बेंगलुरू पुलिस का कहना है कि उसने आरसीबी को रोका था कि इतनी ज़ल्दी जीत का ज़श्न न मनाए।

(पुलिस का कहना है कि उसने आरसीबी से आग्रह किया था कि अभी प्रशंसकों में जोश बहुत ज़्यादा है। पुलिस के पास तैयारी का पूरा समय भी नहीं है। ऐसे में रविवार को जीत का ज़श्न मना लिया जाए, तो अच्छा होगा। पर आरसीबी ने बात नहीं मानी। उसने सरकार से हरी झंडी ले ली।) 

दूसरी तरफ़, आरसीबी का कहना है कि उसे अन्दाज़ा नहीं था कि समर्थकों की ऐसी भीड़ उमड़ आएगी या फिर उसके समर्थक ऐसे बेकाबू हो जाएँगे। 

(सच्चाई यह है कि विराट कोहली सहित आरसीबी के कई खिलाड़ियों, ख़ासकर विदेशियों की भारत से रवानगी का कार्यक्रम तय था। इसी तर्क के आधार पर आरसीबी ने पुलिस की बात अनसुनी कर सरकार से चिन्नास्वामी स्टेडियम में ज़श्न मनाने की हरी झंडी ले ली। हालाँकि उसे खिलाड़ियों को खुली बस में विधानसभा से स्टेडियम तक ले जाने के मामले में अपने क़दम पीछे खींचने पड़े।)  

और राजनेताओं का क्या है? उन्हें तो बस, तस्वीरें खिंचवाने से मतलब होता है। वहीं, बीसीसीआई ने तो इस मामले से पल्ला ही झाड़ लिया है। यह कहते हुए कि यह आरसीबी का आयोजन था, उसका नहीं। 

लिहाज़ा, अन्तिम रूप से ज़िम्मेदार कौन रहा? कीड़े-मकोड़े! (माफ़ कीजिएगा, मैं प्रशंसकों की बात कर रहा हूँ।) इसलिए क्योंकि अपनी ज़िन्दगी को दाँव पर तो उन्होंने ख़ुद ही लगाया था न!!

ऐसे में कुछ मूलभूत प्रश्न सहज रूप से सामने आते हैं कि खेल और खिलाड़ियों के प्रति ऐसा ज़ुनून क्यों? इससे आख़िर हमें क्या हासिल हो जाता है?

मैंने ख़ुद अपनी ज़िन्दगी में कई साल क्रिकेट खेला है। उस दौरान सचिन तेन्दुलकर और कपिल देव जैसे बड़े खिलाड़ियों के साथ भी क्रिकेट खेला है। मैंने देखा है उन्हें नज़दीक से। हमारी-आपकी तरह आम इंसानों जैसे ही है वे भी। भगवान नहीं हैं वे लोग। जैसे हम-आप में से कई लोग अपने पेशे में सफल होते हैं, अच्छा करते हैं, वैसे ही वे लोग भी अपने पेशे में कामयाब हैं और बढ़िया कर रहे हैं। बस, इतनी सी बात है। तो फिर उनके लिए ऐसा पागलपन क्यों?

नामी-गिरामी लोगों के प्रति (कथित प्रशंसकों की) ऐसी दीवानगी, ऐसे ज़ुनून को रुकना चाहिए। सिर्फ़ हम ही इसे रोक सकते हैं। अगर हमने इसे नहीं रोका तो याद रखिए, हमारे साथ हमेशा ऐसे ही कीड़े-मकोड़ों की तरह व्यवहार किया जाता रहेगा। 

——— 

निकेश का मूल लेख

How come on a weekday 3 Lakhs people gathered in a place?

Either we don’t have anything better to do or we are obsessed beyond limits with cricket!

Both are worrying signs! Why?

Because you are a fan but you are treated like an ins#ect 🪲 – they need your money but they don’t give a d#mn to your life!!

This has been proven many a times in the past and got proven again yesterday in namma Bengaluru. How do you even celebrate when you know 11 innocent souls just di*ed?

Who is responsible?

BCCI?

RCB – The franchise?

Bengaluru police?

The politicians?

They all have already washed their hands and playing ping-pong of accountability with each other.

Bengaluru police – Oh we said no to pared but franchise didn’t listen.

Franchise – Oh, we didn’t know we were so famous!

Politicians – Oh, we just wanted to take a picture!

BCCI – Oh, what happened?

So finally the responsibility comes down to inse#cts (sorry I mean fans) because at the end of the day it’s their life!

Some fundamental questions first:

Why this obsession with the game and players? What do you gain?

I have played with likes of Sachin Tendulkar and Kapil Dev (and many more) in my cricketing career and I find these people normal like any other human being.

Like you are good at your profession they are good at theirs! That’s it.

Then why so much adulation?

This celebrity obsession has to stop and only we (the so called fans) can do that.

If not we will always be treated (and ki*led) like insects! 

———

(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

——

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