शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

शिवाजी राजे शिवनेरी किले पर झूल रहे थे। झूला झुलाती जिजाऊ की आँखों में भी सतरंगी सपने झूल रहे थे। शिवबा की घुड़दौड़ के सीमोल्लंघन के। सपने सच्चे होते हैं, उचित संस्कारों के सहारे और संस्कारों की शुरुआत है लोरी। राजे पलने में मुटि्ठयाँ बन्द कर रहे थे। खोल रहे थे। जच्चाघर में अँधेरा था। जिजाऊ आस्था से धार्मिक अनुष्ठान और संस्कार करवा रही थीं। भोसलों के कुलोपाध्याय मल्हारभट आर्वीकर किले पर ही मौजूद थे। विधि-विधान यथाविधि हो रहे थे। किले के अधिकारी किसी चीज की कमी नहीं होने दे रहे थे।

नन्हे शिवाजी राजे अभी अँधेरे कमरे में ही थे। पहली बार सूरज के दर्शन करना भी एक भला सा संस्कार ही था। कुलोपाध्यायजी ने शिवाजी के प्रथम सूर्य दर्शन के लिए प्रातःकाल का सुमुहूर्त चुना। नहा-धोकर, काजल-डिठौना लगाकर, नए-नए कपड़े पहन नन्हें शिवाजी राजे तैयार थे। अब वे जिजाऊसाहब की बाँहों में आ विराजे। राजे को बाँहों में सँभाले, जिजाऊसाहब अंधेरे में से प्रकाश की ओर चलीं। राजे ने पहली सीमा पार की। वह अँधेरे से उजाले में आए। सूर्यबिम्ब पूर्व क्षितिज पर आ रहा था। शिवनेरी पर्वत सुनहरी किरणों में नहा रहा था। नन्हे राजे को सूर्यदर्शन कराया गया। शिवबा ने सूरज को और सूरज ने शिवबा को देखा। पता नहीं कौन ज्यादा चकाचौंध हुआ।

इस समय शिवाजी राजे तीन महीने के थे। राजे पर यथाकाल धार्मिक एवं पारम्परिक संस्कार कराए जा रहे थे। लेकिन उन पर मुख्य रूप से संस्कार कर रहा था प्रचण्ड सह्याद्रि पर्वत। उन संस्कारों की महत्ता समझने की अभी उनकी उम्र नहीं थी। लेकिन सह्याद्रि की चोटियाँ, घाटियाँ छूकर बहने वाली उन्मुक्त हवा उनके मन को अभी से उकसा रही थी। स्वाधीनता के लिए बगावत करने को। शिवनेरी को चारों तरफ से घेरकर खड़े थे भीमाशंकर, लेण्याद्रि, जिवधन, अम्बा, अम्बिका आदि सह्याद्रि शिखर। शिवनेरी गढ़ खड़ा था भीमाशंकर की जटाओं में और नाणेघाट दर्रे के होठों में। पहाड़ के आँचल में मीना, पुष्पावती, कुकड़ी आदि नदियाँ किल्लोल कर रही थीं। श्री गणेश जी, श्री शंकरजी, श्री कालभैरव जी तथा श्री अम्बिका जी आदि देवी-देवता पहरा दे रहे थे। शिवनेरी पर्वत की ही एक अँधेरी गुफा में अक्षयद्वीप की सौम्य आभा में श्रीशिवाई देवी जग रही थी।

पहाड़ों, नदियों, देवी-देवताओं, सह्याद्रि की ऊँची चोटियों और मावळ प्रदेश के देहातों से घिरे शिवनेरी पर शिवाजी ने पहली बार सूरज के दर्शन किए। सह्याद्रि की उन्मुक्त हवाओं ने नन्हे शिवाजी राजे की बलैया लीं। उगते सूरज ने उनकी नन्हीं पुतलियों में तेजस्विता भर दी। श्रीशिवाई माता के आशीष दसों दिशाओं में गूँज उठे। बरसों की अँधेरी रात के बाद उषःकाल हुआ। शिवनेरी किले पर!!

फूले हुए गोलगप्पे थे नन्हे शिवाजी। सबके चहेते। घुटरुओं चलते तो पाँव के झाँझर झनझना उठते। गोरे, हँसमुख शिवाजी अब चलने भी लगे। फिर अपने ही साए के पीछे दौड़ने लगे। सुमुहूर्त पर जिजाऊसाहब ने उनका अन्नप्राशन विधि कराया। राजे ने जिजाऊसाहब के हाथों से पहला कौर खाया। फिर कौवे, गौरैया के नाम का खाया। लेकिन फिर भी पेट न भरा तो चोरी-चोरी आँगन में गए। मुट्ठीभर मिट्टी मुँह में डाल ली।

राजे धीरे-धीरे बड़े हुए। संगी-साथियों के साथ खेलने लगे। मिट्टी में खेलना बहुत भाता था उन्हें। पूरे बदन में मिट्टी मल लेते। यहाँ की मिट्टी से उन्हें बचपन से हो नेह था। दोस्तों के साथ वे किले पर महलों में लुका-छिपी खेलते। लट्टू और गेंद भी खूब खेलते। आँख-मिचौली खेल में भी बड़ा मजा आता। भागदौड़, हँसी-कहकहे और चीख-चिल्लाहट से महल गूँज उठते। शिवनेरी किला आँखों में प्यार लिए उन्हें निहारता।

अब राजे को किलों, परकोटों पर मोर्चा बाँधकर लड़ने का खेल सबसे अच्छा लगने लगा। मिट्टी के टीले बना, उन्हीं को वे किले, परकोटे समझते। फिर इन किलों की नाकाबन्दी शुरू हो जाती। छोटी-सी सेना के हमले, मोर्चे और जवाबी हमले शुरू हो जाते। रणगर्जनाओं से दिशाएँ निहाल होतीं। खेल-खेल में राजकाज और राज्य का खेल, दोनों ही बातों में राजे को मजा आता। इन नकली किलों की रक्षा बच्चे जी-जान से करते। नए किले जीतते। उन पर अपने निशान लगाते। तरह-तरह के हुक्म फरमाते।

बालसेना के लिए जिजाऊसाहब का आँगन अब छोटा पड़ने लगा। जिजाऊसाहब बालकों की युद्धक्रीड़ाएँ देखती रहतीं। माँ की आँखों में यही आस झलकती कि शायद आज के ये खेल कल का यथार्थ बनें। आज की ये नन्हीं तितलियाँ कल गरुड़ बनें।

इसी समय शहाजी राजे रणोत्सव मना रहे थे। लेकिन वह था किसी सुल्तान की खातिर। मराठा लोग सुल्तानों की सल्तनतें सलामत रख सकते थे। उनका विस्तार कर सकते थे। फिर वे अपनी खातिर क्यों नहीं लड़ते? स्वतंत्र, राजा क्यों नहीं बनते? यह सह्याद्रि, समुन्दर और जिजाऊसाहब के लिए अबूझ पहेली थी। सो, अब उनकी आँखें टिकी थीं शिवाजी राजे पर। आज शिवबा का राज्य था मिट्टी का एक टीला। सिंहासन भी वही था। हाथी घोड़े भी मिट्टी के ही थे।

जिजाऊसाहब का आशभरा मातृहृदय सोचता कि आगे चलकर मेरा यही शिवा सचमुच के हाथी-घोड़े, तोपें लेकर शत्रु पर चढ़ाई करेगा। जुल्मी सुलतानों की सल्तनतें उखाड़ फेंकेगा। माँ बाप के अधूरे सपने को सच्चाई में तब्दील करेगा। बहुत प्यार हो गया था शिवाजीराजे को सह्यादि से। घने जंगलों में, गिरिकंदराओं में वे भटकने लगे थे। मोर्चे व नाकाबन्दी के स्थानों पर टोह ले रहे थे। सह्य शिखरों की ही तरह जानी दोस्त अब उन्हें घेरने लगे थे। ताकत बढ़ रही थी। बुद्धि और आत्मविश्वास भी बढ़ रहा था। 
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!
1- शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….

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Neelesh Dwivedi

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