टीम डायरी
काम हुआ आख़िर और अच्छा हुआ। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के माथे पर लगा कलंक धुलने की प्रक्रिया शुरू हो गई। यहाँ की जिस यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस रिसी थी। जिसने घटना के समय ही 2-3 दिसम्बर 1984 की दरम्यानी रात लगभग 5,000 लोगों की जान (अनुमानित आँकड़ा) ले ली थी। फिर उसके बाद फैक्ट्री परिसर में पड़ा करीब 337 मीट्रिक टन ज़हरीला रासायनिक कचरा भी ज़मीन-पानी को प्रदूषित कर-कर के प्रभावितों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी साँप की तरह डसता रहा। वही कचरा आख़िर वहाँ से हटा लिया गया।
इस बाबत जो सुर्ख़ियाँ बनीं, उनकी मानें तो 8 ट्रकों में भरकर इस ज़हरीले कचरे को भोपाल से 230 किलोमीटर दूर पीथमपुर पहुँचाया जा चुका है। वहाँ उसे निर्धारित प्रक्रिया से जलाया जाएगा। बताते हैं कि इस फैक्ट्री परिसर से कचरा समेटने, उसे ख़ास क़िस्म के बोरों में भरने और ट्रकों में लादने तक की पूरी प्रक्रिया में विशेषज्ञों तथा उनके सहयोगी कामग़ारों को महज़ 4 दिन लगे। याद रखिए, 4 दिन! लेकिन इन 4 दिनों की प्रक्रिया पूरी करने में सरकार ने 40 साल लगा दिए। पूरे 40 साल। सिर्फ़ यही नहीं, इस काम में अब 125 करोड़ रुपए ख़र्च होंगे। जबकि यही काम अब से 12 साल पहले 25 करोड़ रुपए में हो जाता। वह भी देश से बहुत दूर जर्मनी में।
ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है कि ‘सरकार’ ने 40 साल के काम को वाक़ई 4 दिन में निपटाया या 4 का काम करने में 40 साल लगा दिए? इसका सीधा ज़वाब नहीं हो सकता, क्योंकि ‘सरकार’ की चाल भी कभी सीधी नहीं होती। विचित्र, टेढ़ी-मेढ़ी सी होती है। इसीलिए उसकी चाल को समझना भी टेढ़ी खीर कहलाता है! इस विचार के समर्थन में दो और उदाहरण देखिए। अभी, 3 जनवरी को ही मध्य प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक नन्दन दुबे से हुई बात के आधार पर एक अख़बार ने आलेख छापा। उसमें दुबे ने बताया कि प्रदेश के चम्बल का इलाका 15 साल पहले डकैतों से मुक्त हो चुका है। फिर भी ‘सरकार’ ने काग़जों पर 106 डकैत नए खड़े कर रखे हैं।
कुछ-कुछ यही हाल नक्सली मामले में है। अगस्त-2024 में ख़ुद केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा था कि मध्य प्रदेश नक्सल मुक्त हो चुका है। इसके बावजूद, नक्सलियों से निपटने के लिए बनी ‘भारी बजट वाली’ राज्य पुलिस की ‘हॉक फोर्स’ अब तक सक्रिय है। बीच-बीच में इस फोर्स और ‘किन्हीं नक्सलियों’ की मुठभेड़ की ख़बरें भी आ जाती हैं। इसीलिए फिर से सवाल उठ जाता है कि जब प्रदेश नक्सल-मुक्त हो गया है, उसका चम्बल क्षेत्र डकैतों से मुक्त है, तो उसके बाद भी ये ‘नक्सली’ और ‘डकैत’ आते कहाँ से हैं और क्यों? ज़वाब इसका भी किसी के पास नहीं है। या होगा भी तो देता कौन है ज़वाब और किसे दे? जनता के प्रति तो कोई ‘सरकार’ कभी ज़वाबदेह होती नहीं है न!
इसी कारण, ‘सरकार’ को अक़्सर ‘धन्य हो सरकार’ कहकर सम्बोधित किया जाता है। हमने भी वही किया है! वरना और किया भी क्या जा सकता है! सरकार की लीला, सरकार ही जाने!!
शृंखला के पूर्व भागों में हमने सनातन के नाम पर प्रचलित भ्रांतियों को देखा। इन… Read More
पहले चन्द सुर्ख़ियों पर नज़र डालिए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), इन्दौर का एक छात्र था,… Read More
बर्फीली ओस ने उसके चेहरे को जो ठंडक दी, वह किसी नए आतंक की आमद… Read More
एक और साल ख़त्म होने को है। बस, कुछ घंटे बचे हैं 2024 की विदाई… Read More
अपने करियर के साथ-साथ माता-पिता के प्रति ज़िम्मेदारियों को निभाना मुश्क़िल काम है, है न?… Read More
भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन...’ से जुड़ी अहम तारीख़ है, 27 दिसम्बर। सन् 1911… Read More