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कभी-कभी व्यक्ति का सिर्फ़ नज़रिया देखकर भी उससे काम ले लेना चाहिए!

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

कभी-कभी व्यक्ति का सिर्फ़ नज़रिया देखकर भी उससे काम ले लेना चाहिए! यह मैं अपने जीवन के सच्चे अनुभव से कह रहा हूँ। मैंने कुछ समय पहले ही अपने एक पुराने साथी पेशेवर से बात की। जिस कम्पनी वह नौकरी करता है, वहाँ उसका साक्षात्कार मैंने ही किया था। तब से लेकर अब तक वह उसी कम्पनी में लगा हुआ है। मुझे अब भी वह दिन अच्छी तरह याद है, जब मैंने उसका साक्षात्कार लिया था।  

मैं उस वक़्त सम्बन्धित कम्पनी में फर्स्ट लाइन मैनेजर था। वह जैसे ही साक्षात्कार के लिए मेरे कक्ष में आया, मैंने उसे एक समस्या बताई और उससे उसका हल पूछा। वह बड़ी देर तक उस समस्या से जूझता रहा। धीरे-धीरे वह समाधान की तरफ़ बढ़ तो रहा था, लेकिन पूरी ढूँढ नहीं पा रहा था। इस तरह क़रीब 35 मिनट बीत गए। तब मैंने उससे कहा कि कोई बात नहीं, नही हो पा रहा है तो मामले को बन्द कर देते हैं। 

लेकिन उसने मुझसे पाँच मिनट और देने का आग्रह किया। मैंने बात मान ली और वह हल खोजने में जुटा रहा। कुछ समय बाद मैंने फिर कहा कि कोई बात नहीं मामला बन्द कर देते हैं अब। इस बार भी उसने पाँच मिनट और माँगे और अपने काम में लगा रहा। इस तरह दो-तीन बार हो गया। वह हार नहीं मानना चाहता था। समस्या का समाधान निकाले बगैर मामले को छोड़ना नहीं चाहता था। लेकिन समय जा रहा था। 

आख़िरकार मैंने उसका साक्षात्कार ही समाप्त कर दिया। मुझे करना पड़ा। इससे वह थोड़ा निराश हो गया पर हम कुछ कर नहीं सकते थे। वह समस्या का समाधान नहीं निकाल पाया। इसके बाद मैं यह पक्का नहीं कर पा रहा था कि उसे नौकरी पर रखने के लिए अपनी मंज़ूरी दूँ या नहीं। वह सभी योग्यताओं पर खरा उतरा था। बस, वही एक समस्या हल नहीं कर पाया था, जो मैंने साक्षात्कार के समय उसके सामने रखी थी। 

हालाँकि, इन सभी चीज़ों से ज़्यादा मुझे उसका वह नज़रिया अच्छा लगा था कि वह किसी भी सूरत में हाथ खड़े करने के लिए तैयार नहीं था। आख़िर, उसी नज़रिए को बड़ा आधार मानकर उसे नौकरी पर रखने के लिए मैंने अपनी अनुशंसा कर दी। क्या कोई अनुमान लगा सकता है कि आगे क्या हुआ होगा? कोडिंग से जुड़ी कई जटिल समस्याओं का हल खोजने में उसका वही नज़रिया हमारे और कम्पनी के बहुत काम आया।  

वह हमेशा अपना 100 प्रतिशत प्रयास करता था। हमेशा समाधान खोजने के बाद ही हमारे पास आता था। उसके खोजे गए समाधान इतने अव्वल दर्ज़े के होते थे कि ग़लत इरादे से की जाने वाली किसी भी तरह की तकनीकी घुसपैठ उसमें सम्भव ही नहीं हो पाती थी। आगे चलकर मैं अपने सफर पर निकल गया। वह अब तक उसी कम्पनी में काम कर रहा है। मेरी उससे बीच-बीच में चार-पाँच बार बात हुई। हर बार मैं उससे मज़ाक में कहता हूँ, “लगता है, तुम इसी कम्पनी से ही अपना रिटायरमेन्ट लोगे।” वह हँसकर बात टाल देता, जैसे आज भी। 

आज 17 साल बीत चुके हैं। लेकिन वह आज भी अपने काम और अपनी टीम को उसी जोश के साथ सँभाल रहा है, जैसे बिल्कुल नया ही हो। समय के साथ बदलते वातावरण और चुनौतियों को वह बहुत तेजी से अपनाता है। उसका यही गुण आज तक उसे उस बहुराष्ट्रीय कम्पनी में प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण पेशेवर बनाए हुए हैं। मैं आज कह सकता हूँ कि अगर उस दिन मैंने उसे नौकरी पर रखने की सहमति न दी होती, तो ग़लत होता। 

ऐसे अनुभवों से एक और बात साबित हुई  मेरे सामने कि निर्णय लेना वास्तव में एक कला है। यह गणित या विज्ञान नहीं है, जिसे हम-आप किसी सूत्र या गुणा-भाग के आधार पर कर लें। बल्कि अगर सिर्फ़ गुणा-भाग के आधार पर फ़ैसले किए जाने लगें, तो उनके ग़लत होने की आशंका कहीं ज़्यादा होती है।

क्या लगता है?

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निकेश का मूल लेख 

Hire for attitude – rest will fall in place. Real story – I just spoke to an ex-colleague who was hired by me 17 years ago for an MNC – he is still working there!!

I still vividly remember his interview. I was a first line manager and was interviewing this gentleman in my cabin. I gave him a problem (more of an algorithm) to solve. He was struggling but making progress.

After around 35 minutes, I told him, let’s close but he asked for 5 more minutes. He kept solving that problem but was not able to reach to final solution. I kept telling him to close but he kept asking for 5 more minutes:-) This happened 2-3 times because he just didn’t want to give up.

Finally in the interest of time I had to close the interview. He was disappointed that he couldn’t reach to final solution but anyways.

I was not sure whether I should hire him or not. One thing that got my attention was his attitude – he was not giving up! His other skills were fine and finally I decided to hire him.

Guess what – his same attitude (not giving up) helped us in solving some complex code problems. He would always give his 100% and come back with a solution.

His code used to be top quality so much so that my QA lead used to tell me that it was so difficult to find any bug in his code!

I talk to this gentleman once in 4-5 years and every time I tell him jokingly that you will retire from this company only! This morning also same joke and same answer.

17 years is a long time. He has been moving his teams/functions so that feel of new work, new environment, new challenges is there which is keeping him with this MNC.

Not hiring him that day would have been a wrong decision.

Which tells me that decision making sometimes is an art not Math or Science! Your data may push you in a wrong direction but a bit of “hunch” along with data might just help!

Thoughts? 

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(निकेश जैन, कॉरपोरेट प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

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