विकास, दिल्ली से, 28/11/2020
अभी तीन रोज पहले सवेरे से ही फेसबुक के ज़रिए मिली एक ख़बर ने बड़ा बेचैन कर रखा था। आजकल ख़बरें अख़बार से बाद में, फेसबुक और ट्विटर से पहले मिलती हैं। अख़बार तो वैसे भी कोरोना-काल में अपन ने बन्द ही कर रखा है। इसलिए ई-पेपर पढ़ने के लिए मोबाइल सबसे सुविधाजनक बन पड़ता है। जहाँ मर्जी ले जाओ। चाहे तो शौचालय में भी।
तो ख़बर थी, ट्विटर पर आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) के 10 लाख फॉलोअर्स (साथ जुड़े लोग) हो गए हैं। अब इसमें यूँ तो बेचैनी का कोई कारण नहीं ठहरता लेकिन मेरे लिए था। दो कारण थे इसके। पहला- ये सवाल कि आरबीआई को फॉलो करने वाले ये 10 लाख लोग हैं कौन? दूसरा- फेसबुक पोस्ट में इस ख़बर पर ही सवाल उठाए गए थे क्योंकि समाचार-माध्यमों में यह कहीं दिखी नहीं। सो, प्रश्न ये भी इतनी बड़ी ख़बर आख़िर कहीं आई क्यों नहीं?
जहाँ तक अपना ताल्लुक है तो अभी तक अपन अपने को न्यूज़ सेंस (ख़बर की समझ) के मामले में ठीक-ठाक ही समझते आ रहे थे। पर ये ख़बर और इस पर सामाजिक माध्यमों (Social Media) में चल रही बहस को देखकर शक होने लगा कि कहीं अपना न्यूज़ सेंस गड़बड़ा तो नहीं गया है। फिर तभी देखा कि ट्विटर और वॉट्सएप पर इसे लेकर चुटकुले भी बनने लगे। अपने हैंडल पर नीला टिक लिए बैठे मधु मेनन नाम के पाचक (Chef) ने तो व्यंग्य में यह भी लिख दिया कि ट्विटर पर अभिनेत्री किम कार्देशियाँ के तो 6.77 करोड़ फॉलोअर्स हैं।
अब जब इस तरह की बातें होने लगीं तो मन में ख़ुद से पूछा कि गुरु लगता है, पाँच साल पहले छूटी ख़बर की समझ भी अब जाती रही क्या? लेकिन मन नहीं माना। क्योंकि सवाल तो तब भी जस का तस ही था कि आख़िर हमारा भारतीय रिज़र्व बैंक 10 लाख फॉलोअर्स वाला दुनिया का पहला केन्द्रीय बैंक बना है। मगर ये ख़बर कहीं है क्यों नहीं?
वैसे, इससे पहले अप्रैल में ही ख़बर आई थी कि ट्विटर पर आरबीआई के फॉलोअर्स की संख्या 7.45 लाख हो गई है। तब भी यह दुनिया में सबसे लोकप्रिय केन्द्रीय बैंक था। दिलचस्प बात ये कि तब भी किसी ने इस पर गौर नहीं किया था। अब जब 10 लाख फॉलोअर्स होने की ख़बर आई, तब भी नहीं किया। इसने मेरी बेचैनी और बढ़ा दी।
बहरहाल, मैंने दफ़्तर का काम निपटाया और अपनी जिज्ञासाएँ खुद शान्त करने में जुट गया। चीज़ों को थोड़ा-सा खँगालना शुरू किया। यह कहानी समझने के लिए मुझे थोड़ा-सा पीछे जाना पड़ा। तारीख 20 अप्रैल। उस दिन ट्विटर पर आरबीआई के 1.31 लाख नए फॉलोअर्स जुड़े थे। ऐसा क्यों हुआ, इसका ठीक-ठीक कारण तो नहीं बताया जा सकता। लेकिन यह वह समय था, जब देश में तालाबन्दी चल रही थी। उससे भी तीन दिन पहले 17 अप्रैल को आरबीआई के प्रमुख शक्तिकान्त दास ने अपना सम्बोधन भी दिया था।
दास ने 17 अप्रैल को ही कोरोना से जुड़े विनियामकीय पैकेज की घोषणा की थी। उसी दिन राज्यों की डब्ल्यूएमए (Ways and Means Advances) सीमा 60 फ़ीसद तक बढ़ाने का ऐलान किया था। असल में आरबीआई राज्य सरकारों को कुछ अग्रिम देता है। ताकि वे प्राप्तियों और भुगतानों में आने वाली अपनी विषमताओं को ठीक कर सकें। उसे ही डब्ल्यूएमए कहते है। हिन्दी में इसे ‘अर्थोपाय अग्रिम’ कहते हैं। बहरहाल, उस रोज कुछ और घोषणाएँ भी की गई थीं। आरबीआई के ट्विटर हैंडल से यह सब चल रहा था।
यह मालूम होते ही मैंने थोड़ा और खंगाला तो पता चला कि मार्च 2019 से अप्रैल 2020 के बीच सालभर में ट्विटर पर आरबीआई के फॉलोअर्स की संख्या दोगुनी हुई थी। ट्विटर पर आरबीआई का पदार्पण जनवरी 2012 में हुआ। तब मार्च 2019 तक सात साल में 3,42,000 फॉलोअर्स हुए। फिर अगले साढ़े तीन लाख फॉलोअर्स एक ही साल में हो गए। यह चौंकाने वाली बात तो है न? और जो आपको चौंकाए, वह ख़बर भी होती ही है।
सो, यहाँ तक अपन अपने ख़बर की समझ को लेकर आश्वस्त हो सकते थे। पर इस कवायद से एक सवाल और पैदा हुआ कि अचानक इतने फॉलोअर्स आए कहाँ से? ये कौन लोग हैं, जो आरबीआई को फॉलो कर रहे हैं? इसका जवाब यूँ मिला कि सम्भव है, कुछ फॉलोअर्स अमिताभ बच्चन के साथ आ गए होंगे। उन्हें सितम्बर में आरबीआई ने ब्रान्ड एम्बेसडर (प्रचार का चेहरा) बनाया था। हालाँकि एक साल में साढ़े तीन लाख फॉलोअर्स बढ़ने का मामला तो अमिताभ के आने से पहले का था। लिहाज़ा, पड़ताल जारी रही।
तब पता चला कि देश में 20 लाख से ज़्यादा तो पंजीकृत कम्पनियाँ ही हैं। इनमें से सात लाख से ज्यादा बन्द हो गईं। फिर भी 13 लाख बचती हैं। ये फॉलोअर्स इन कम्पनियों के मालिकान भी हो सकते हैं। बहुत मुमकिन है कि आरबीआई के कर्मचारी, सेवानिवृत्त कर्मचारी भी इस संख्या में शामिल हों। बहरहाल! जो भी हों, उन्होंने मिलकर इतना तो ज़रूर किया कि दुनियाभर के केन्द्रीय बैंकों की ट्विटर बिरादरी में आरबीआई को सर्वोपरि बना दिया।
तो पहले सवाल का उत्तर कुछ यूँ रहा कि आरबीआई के 10 लाख फॉलोअर्स का मसला हँसी-मज़ाक का विषय तो बिल्कुल नहीं था। इसमें सच्चाई का आधार, पूरा मौजूद था। पर एक प्रश्न तब भी बाकी था कि यह ख़बर समाचार माध्यमों ने आम लोगों तक पहुँचाई क्यूँ नहीं? इसका जवाब मुझे अमेरिकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड की सालों पहले कही बात में मिला। उन्होंने कहा था, “इस देश (अमेरिका) के लोग बैंकिंग और मौद्रिक व्यवस्था को नहीं समझते। जिस दिन वे इसे समझ जाएँगे, अगले सूर्योदय से पहले क्रान्ति हो जाएगी।”
विचार करने लायक है कि फोर्ड की वह बात क्या हम भारतीयों पर भी लागू होती है? ज़वाब हाँ में मिलेगा, शायद। बैंकिंग और मौद्रिक व्यवस्था को हम भी नहीं समझते। यहाँ तक कि किसी बैंक में सालों-साल तक काम कर चुका कोई व्यक्ति भी इस व्यवस्था की ठीक-ठाक जानकारी रखता है, यह पुख़्ता तौर पर कहा नहीं जा सकता।
अलबत्ता, दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा ही है कि देश की जनता ऐसे मसलों पर भी जागरूक हो रही है। क्योंकि आरबीआई के फॉलोअर्स तो सच में बढ़े ही हैं। भले ख़बर किसी को समझ में आई हो या नहीं!
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(विकास, दिल्ली में एक निजी कम्पनी में काम करते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के लिए अक्सर लिखते हैं। उन्होंने यह लेख व्हाट्सएप सन्देश के जरिए भेजा है।)
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