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क्या यह वाकई सरकार की ओर से कोरोना योद्धाओं का सम्मान है?

टीम डायरी, 20/11/2020

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अभी गुरुवार, 19 नवम्बर को एक अहम घोषणा की है। इसके मुताबिक देशभर के चिकित्सा महाविद्यालयों (Medical Colleges) में कोरोना योद्धाओं के बच्चों के दाखिले के लिए एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों में कुछ सीटें आरक्षित रखी जाएँगीं। केन्द्र सरकार के काेटे (Central Pool) से ये सीटें दी जाएँगी। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने यह घोषणा की। साथ ही जोड़ा कि सरकार का “यह फैसला उन कोरोना योद्धाओं के सम्मान में एक छोटा सा प्रयास है, जिन्होंने मानवता के लिए जीवन बलिदान कर दिया।”

फौरी तौर पर यह घोषणा और उसके साथ डॉक्टर हर्षवर्धन की टिप्पणी सन्तोष और सुकून देने वाली लग सकती है। क्योंकि इससे यह संकेत मिलता ही है कि सरकार कम से कम ऐसे मसलों पर संवेदनशील रवैया ताे अपना रही है। लेकिन सरकार की ओर से जारी इस सूचना पर थोड़ा आगे बढ़ें तो सन्तोष और सुकून महसूस करने वालों को धक्का लग सकता है। कारण कि आगे बढ़ने पर हमें पता चलता है कि कोरोना योद्धाओं के बच्चों के लिए देश भर के चिकित्सा महाविद्यालयों में सिर्फ 5 सीटें आरक्षित की गईं हैं। वह भी 2020-21 के शिक्षा सत्र के लिए। इन सीटों पर उन काेरोना योद्धाओं के बच्चों को प्राथमिकता से दाखिला दिया जाएगा, जो आम आदमी को कोरोना से बचाते हुए खुद संक्रमित हुए और अपनी जान गवाँ बैठे। विशेष तौर पर चिकित्सक और चिकित्साकर्मियाें के बच्चे इस श्रेणी (wards of corona wariers) में शामिल किए गए हैं। 

लिहाजा यहीं से सरकार के इस फैसले के साथ कई ‘सोचक’ सवाल जुड़ जाते हैं। इनमें पहला- जिन कोरोना योद्धाओं ने जान गवाँई, उनकी कुल तादाद की तुलना में महज़ 5 सीटों का यह आरक्षण क्या वाकई सम्मानजनक कहलाएगा? दूसरा- चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों के अलावा पुलिस, सुरक्षा बलों आदि से संबद्ध लोगों ने भी आम जनता काे कोरोना से बचाते हुए अपनी ज़िन्दगियाँ होम की हैं। उनके बच्चों के बारे में ख्याल क्यों नहीं किया गया? 

तिस पर इन ‘सोचक’ सवालों के साथ कुछ ‘रोचक’ आँकड़े भी जुड़ते हैं। मसलन- कोरोना काल में जान गँवाने वाले चिकित्सकों की ही संख्या अक्टूबर तक 515 (Indian Medical Association’s figure) से अधिक हो चुकी थी। ऐसे चिकित्साकर्मियों और पुलिस, सुरक्षाबलों आदि से संबद्ध लोगों की संख्या का तो देशव्यापी आँकड़ा भी नहीं है। यकीनन, यह 1,000 के आसपास तो होनी चाहिए। सरकार चाहती तो इन सभी के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए किसी न किसी रूप में रियायत दे सकती थी। जो बच्चे चिकित्सा महाविद्यालयों में जाने के इच्छुक हैं, उनको भी। क्योंकि केन्द्र सरकार के कोटे में 230 सीटें उपलब्ध हैं। इनमें से आधी नहीं ताे एक चौथाई सीटें ऐसे बच्चों के लिए रखी जा सकती थीं। तिस पर तथ्य ये भी है कि केन्द्र सरकार के कोटे की सीटों में से 160 (दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार) रक्षा, विदेश, गृह जैसे मंत्रालयों के लिए आरक्षित रहती हैं। इनको किस ‘प्रक्रिया’ से भरा जाता है, यह किसी को पता नहीं।

इतना ही नहीं। सरकार चाहती तो ‘विशेष परिस्थिति और प्रावधान’ के तहत कुछ अतिरिक्त सीटें भी हासिल कर सकती थी। क्योंकि सीटों की कमी नहीं है। देश भर में 565 चिकित्सा महाविद्यालय हैं। इनमें एमबीबीएस तथा बीडीएस की क्रमश: 82,000 और 27,000 सीटें हैं। एक शिक्षा सत्र की ही तो बात थी। लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। इसीलिए उसके इस निर्णय पर ये प्रश्न भी है कि क्या यह वाकई सरकार की ओर से कोरोना योद्धाओं का सम्मान है? 

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